Monika garg

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लेखिनी 15 पार्ट सीरीज प्रतियोगिता # सती बहू(भाग:-3)

गतांक से आगे:-


कहते हैं जब गम का अतिरेक हो जाता है तो वो आंखों से छलक आता है। चंदा मन ही मन सुबक रही थी पर पिछली बातें सोच सोच कर गम छाती पर इतना भारी हो गया कि मन उसे सम्भाल नहीं सका और वह आंखों से उमड़ कर बाहर बहने लगा।

धीरे धीरे चंदा की सिसकियां शांत होने लगी थी ।बाहर आंगन में चाचा ससुर अपनी पत्नी को कह रहे थे ," भाग्यवान क्या जमाना आ गया है ।घर में पत्नी होते हुए भी दूसरी पत्नी ला रहा है विशम्बर ।भाई साहब घर की इज्जत की जरा भी परवाह नहीं करते तभी भौजाई को पूरी छूट दे रखी है अपनी मनमानी करने की ये सब वो बच्चे के लिए ही कर रही है न,अगर भगवान न करें दूसरे वाली ने भी नहीं जना तो…..?"


तभी चंदा की चाची सास बोली ,"अब कर भी क्या सकते हैं ? जिजी के आगे कोई बोल सका है जो अब बोलें । कुछ कहों तो खाने को दौड़ती है ।अपने जगमोहन के शहीद होने पर भी कहां 

आई थी नकचढ़ी।"


"अच्छा जगिया की मां ये तो बता ऐसी सुशील बहू को छोड़कर और किसके कर्म फोड़ने चली है तुम्हारी जेठानी?" जगमोहन के पिता थोड़ा गम्भीर होकर बोले।

"मुझे तो बस आस पड़ोस से यही पता चला है कि पास के गांव की कोई छोटे-मोटे जमींदार की छोड़ी हुई लड़की है ।सुना है बड़ी तेज है पहली ससुराल में सब कुछ बटोर कर मायके आ बैठी है ।पिता ने दहेज का केस और कर रखा है। कमली नाम है उसका ।अपने गांव में बदनाम है पूरी ,पता नहीं जिजी क्या सोचकर ब्याहने चली है उस लड़के को।*

जब चंदा ने ये बातें सुनी तो एक अनजाना डर उसके मन में समा गया ।पगली ये नहीं सोचती कि उसे तो उस घर से कभी के धक्के मिल चुके थे लेकिन फिर भी उसे ये लगता था कहीं वो आने वाली लड़की उसके ससुराल  और पति का अहित ना करदे।

गली में औरतें तैयार होकर हवेली में जा रही थी शायद आज रतजगा था ।बस उन्हीं गीतों को सुनते-सुनते चंदा की कब आंख लग गई उसे पता भी नहीं चला ।

रात सपने में उसके बाबूजी उसके सिर पर हाथ फेर रहें थे उसे ऐसे लगा जैसे बाबूजी कुछ कहना चाहते हैं उसने जब अपने पिताजी से पूछा कि आप कुछ बोलना चाहते हो ?

बस उनके होंठ फड़के कि "आगे बढ़ मेरी बिटिया।"

तभी मुर्गे ने बांग दे दी ।चंदा की आंख खुल गई।वो बिस्तर पर बैठे बैठे सोचने लगी कि शायद पिताजी मुझे कहने आये थे कि तू सब पीछे का भूल जा और जीवन में आगे बढ़।उसने मन ही मन फैसला किया कि अब वो नहीं रोएंगी।बहुत रो ली ,बहुत गिड़गिड़ा ली ।अगर उसके पति को उसकी जरूरत नहीं तो वो क्यों उसके पीछे-पीछे जाएं उसका भी जीवन है वह भी उसे जिएगी अपने ढ़ंग से ।उसने अपनी आंखें साफ की और साड़ी के पल्लू को सिर पर रखा और आंगन में आ गयी । वहां चाचा ससुर बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे ।चंदा का नियम था वह सुबह उठते ही सबसे पहले बड़ों को प्रणाम करती थी ।उसने चाचा ससुर के पैर छूए और रसोई घर के बाहर झूठे बर्तनों को साफ करने बैठ गई। जल्दी से घर का काम निपटा कर चंदा ने काजल ,बिंदी लगाई ,आज मांग नही भरी थी चंदा ने,एक अच्छी सी साड़ी निकाली (उसकी चाची सास ने उसे अपनी सारी पुरानी साड़ियां दे दी थी )और पहन कर अपनी चाची सास का खाना लेकर उनकी कोठरी में गयी।

वहां उनके पैर छूकर उनके पैरों के पास बैठ गई।

"क्या बात बहूरिया।आज तो सुबह सुबह ही तैयार हो गई। कहां जा रही हो?"

"कुछ नहीं चाची जी …. कुछ मन पर बोझ है उसे उतारने जा रही हूं।" यह कहकर उसने फिर से चचिया सास के पैर छूए और सिर पर पल्लू करके हवेली की ओर चल दी।


चंदा हवेली जाकर क्या करने वाली है और नयी बहू का स्वागत कौन करेगा ।ये जानने के लिए अगले भाग का इंतजार….

(क्रमशः)

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4 Comments

HARSHADA GOSAVI

15-Aug-2023 12:50 PM

Very nice

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Alka jain

04-Jun-2023 12:57 PM

V nice 👍🏼

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वानी

01-Jun-2023 06:54 AM

Nice

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